हर दवा केवल फायदा नहीं करती
आजकल वर्किंग वुमन, न्यू क्लियर फैमिली और परिवार नियोजन की जागरूकता के चलते राष्ट्री य परिवार नियोजन सर्वे (NFHS-1-1992-93) के डाटा अनुसार गर्भ निरोधक संसाधनों का उपयोग 40 प्रतिशत से बढ़कर NFHS-3 (2014) में 59 प्रतिशत हो गया है। डाटा में यह पाया गया कि गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग 18 वर्ष कि आयु से ही लड़कियां शुरू कर देती हैं क्योंकि ठीक से प्रयोग करने पर यह गोलियां 99 प्रतिशत प्रभावी होती हैं। ये कंबाइंड पिल्स, मिनी पिल्स अथवा मोनोफेसिक, बाइफेसिक और ट्राइफेसिक टाइप की होती हैं। इनमें प्रोजेस्टिन और एस्ट्रोजेन हार्मोन होते हैं। क्या इन दवाइयों को निरंतर कई वर्षों तक लेने के दुष्परिणाम को महिलाएं जानती हैं? यदि नीचे दिए कोई भी रिस्क फैक्टर्स आप में हैं तो अपने चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही इनका उपयोग करें तथा लम्बे समय तक उपयोग से भी बचें और समय-समय पर जांच कराते रहें।
• शिशु को दूध पिलाती हों।
• उच्च रक्तचाप की शिकायत तथा उम्र 35 से ज्यादा हो।
• जीवनकाल में पल्मोनरी एम्बोलिजम हुआ हो।
• दिल की बीमारी, दौरा, स्ट्रोक या खून का थक्का बना हो।
• किडनी से सम्बंधित कोई बीमारी या वेरिकोज वेन्स की शिकायत हो।
• देखने में दिक्कत के साथ तीव्र सिरदर्द होता हो। मिर्गी का इलाज चल रहा हो।
• सर्जरी होने वाली हो जिसकी वजह से आपको कई दिनों तक आराम करना हो।
• यदि कभी ब्रैस्ट कैंसर हुआ हो या गर्भाशय या योनि से अनजान कारण से रक्त प्रवाह हो रहा हो।
लम्बे समय तक गर्भ निरोधक लेने से दिल के दौरे, लीवर, ट्यूमर, गॉल्स्टोन और कोलेस्टेटिक पीलिया की सम्भावना बढ़ती है। घबराहट, ब्रैस्ट टेंडरनेस, उलटी, वजन, बढ़ना, सिरदर्द, डिप्रेशन, माइग्रेन जैसी दिक्कतें भी महिलाओं में बढ़ जाती हैं। यदि आप पेनिसिलीन, ट्रेट्रासाइक्लीन, टी बी, मिर्गी की दवाइयां या एच आई वी ड्रग्स ले रहे हैं तो गर्भ निरोधक गोलियों के असर में दखल अंदाजी कर सकती हैं। इसीलिए इन दवाइयों के प्रति जागरूक होना बहुत जरुरी है।