बिना डॉक्टरी सलाह के दवाइयां न लें
WHO के अध्ययन के अनुसार 53 भारतीय बिना डॉक्टरी सलाह के दवाइयां लेते हैं। बैक्टीरिया से होने वाली तमाम बीमारियों के उपचार में एंटीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है। लेकिन डॉक्टर की फीस बचाने के चक्कर में मरीज मेडिकल स्टोर से दवाइयां खरीद कर खा लेते हैं। अक्सर ये दवाएं या तो ओवर डोज़ या कम मात्रा में ली जाती हैं, तथा पूरा कोर्स किये बिना ही बंद कर दी जाती है। बैक्टीरियल काउंट कम होने से बीमारी ठीक होने लगती है, लेकिन बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि रजिस्टेंस डेवलप कर लेते हैं।
सर्दी, जुखाम जैसे मामूली बीमारी में डॉक्टर एंटीबायोटिक्स नहीं लिखते हैं। तो WHO के अनुसार भारत में 48 फीसदी लोग डॉक्टर बदलने की सोचते हैं जबकि साधारण वायरल में एंटीबायोटिक्स की कोई आवश्यकता ही नहीं है। TB, HIV जैसी जानलेवा बीमारियों में अब मल्टी ड्रग थेरेपी का प्रयोग किया जाने लगा है। इससे बैक्टीरिया जल्दी रजिस्टेंस डेवलप न कर पाएं। मलेरिया का क्लो्रोक्वीरन से, निमोनिया का सेप्ट्रा न जैसी एंटीबायोटिक से रजिस्टेंस डेवलप हो चुका हैा यानी कि ये दवाएं अब कम असर करती हैं। कुछ झोलाछाप डॉक्टैर्स ने हर बीमारी में हाई लेवल एंटीबायोटिक्सो देकर, समस्याम को और बिगाड दिया है। मेरा ऐसा मानना है कि एंटीबायोटिक्स का उपयोग तभी करना चाहिए जब सामान्या उपचार काम न करे और तत्काील इलाज की जरूरत हो। जीवाणुओं से होने वाली बीमारियों से लडने के लिए जैविक और प्राकृतिक उपलब्ध संसाधनों के प्रयोग को बढ़ावा दें जिससे शरीर नई-नई बीमारियों का घर न बने।