गर्भावस्था में अस्थमा
डॉक्टर रचना दुबे ने जानकारी देते हुए कहा कि आज के प्रदूषित वातावरण में अस्थमा के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। यह एक सामान्य व्यक्ति के लिए ही बहुत बड़ी समस्या है तो किसी गर्भवती महिला के मामले में इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है। गर्भस्थ शिशु पर हर उस चीज़ का प्रभाव पड़ता है, जिससे मां गुजरती है, चाहे वह कोई भी शारीरिक या मानसिक समस्या ही क्यों न हो।
प्रीमैच्योर डिलीवरी कि आशंका
प्री एक्लेम्पसिया (हाई ब्लड प्रेशर)
शिशु का विकास ठीक से न हो पाना।
सामान्य प्रसव न हो पाना।
जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना।
अस्थमा के वजह से न केवल मां के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है बल्कि इस दौरान माँ के जरिये शिशु को मिलने वाली ऑक्सीजन कि मात्रा में कमी आने से बच्चे के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। गर्भधारण के पूर्व से ही इस समस्या का नियंत्रण कर लेना चाहिए और नौ महीने इन्हेलर्स तथा कुछ दवाइयां जो गर्भावस्था में सुरक्षित होती है उनका उपयोग करते रहना चाहिए।
इन्हेलर्स ज्यादा सुरक्षित होते हैं क्योंकि इसके द्वारा ली गई दवा मुख्यतौर पर लंग्स को प्रभावित करती है जबकि मुंह से ली जाने वाली दवाइयां पुरे शरीर पर अधिक असर डालती है।
अस्थमा कुछ Allergens से होता है, जिन्हे ट्रिगर्स कहा जाता है जैसे धूल, मिट्टी, फूल, सुगंध, धुआँ, रसोई की छौंक, तली-भुनी मसालेदार चीज़ें तथा गाय का दूध, अंडे, मूंगफली, सोयाबीन, गेहूं, मछली, पालतू जानवर, पोलेन ग्रेन्स, धूम्रपान, गर्म एवं अधिक नमी वाले वातावरण में या अत्यंत ठन्डे मौसम में अस्थमा के लक्षण बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं तथा भावनाओं का उद्वेग भी अस्थमा के ट्रिगर्स है।
डॉक्टर रचना दुबे ने बताया कि डॉक्टर के परामर्श के बिना कोई दवाई न लें क्योंकि कुछ दवाओं का सेवन गर्भावस्था में नहीं किया जा सकता। साथ ही पूरे समय डॉक्टर के संपर्क में रहे और गर्भ में बच्चे की गतिविधियों की जांच कराती रहें।