गर्भाधान सिर्फ एक संस्कार भर नही है
गर्भ में शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है – वह सुनता और ग्रहण भी करता है। माता के गर्भ में आने के बाद से गर्भस्थ शिशु को संस्कारित किया जा सकता है।
गर्भधारण काल में माता का चिंतन, चरित्र और व्यवहार तीनों ही उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को प्रभावित करते हैं। इस अवस्था में वह जिस तरह के बच्चे की कल्पना करती है, जिस तरह का भोजन करती है, जिस तरह का वातावरण उसे मिलता है, वह सब बच्चे के अंदर सूक्ष्म रूप से समाहित होता जाता है।
माँ की आदतें, इच्छाएं आदि भी संस्कार के रूप में उसकी संतान के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। इस अवस्था में माता का शारिरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य बच्चे के स्वास्थ्य को विकसित करता है। इस अवस्था में माता जो भी देखती है, सीखती है, महसूस करती है, इच्छा करती है, कल्पना करती है, उसके अनुरूप ही उसके बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण बीज रूप में हो जाता है। गर्भावस्था के 09 महिने शिशु के आने वाले 90 वर्षों का निर्माण करते हैं।