किशोरावस्था है जीवन का नाजुक मोड़
रवि आज्ञाकारी, पढ़ाई में रुचि लेने वाला, माँ का आदर्श 15 वर्षीय बेटा, 10वी का छात्र है। आज बात-बात पर गुस्सा करता है। कहता है कि मुँह पर मुहांसे से चेहरा ख़राब हो गया है, स्कूल नहीं जाऊंगा। किशोरावस्था एक ऐसी संवेदनशील अवस्था है, जिसमें हार्मोनल चेंजेस के कारण शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और व्यव्हार सम्बन्धी महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। जैसे प्यूबिक हेयर, आवाज में बदलाव, चेहरे पर ढेर सारे पिम्पल्स, कद का बढ़ना, लड़कियों में पीरियड्स होना। यह परिवर्तन इतने आकस्मिक और तीव्र होते हैं कि किशोर इन्हें अनुभव तो करते हैं पर समझने में असमर्थ होने के कारण घबरा जाते हैं, कि न जाने क्या हो रहा है। डॉ. रचना दुबे ने बताया कि ऐसे में पेरेंट्स को यह अहसास दिलाना चाहिए कि ये सारे बदलाव सामान्य है। जब वो भी इस उम्र में थे, इन्ही बदलावों से गुजरे थे।
दिलों का बेकाबू हो जाना, दिन-रात बेपरवाह होकर जीना और दोस्तों के साथ रातभर पब या महफ़िल ज़माना। हर बार पर ढेरों सवाल और कभी सवालों के बेतुके से जवाब, टीनएजर्स में अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण, मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन, उग्रता, पेरेंट्स की बातों को तवज्जों ना देना, उनसे दूरी बनाना कुछ ऐसे ही अलग रंग और रूप लेकर किशोरावस्था आती है।
डब्ल्यूएचओ के अडोलसंट 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार मानसिक विकारों से प्रभावित टोटल पॉपुलेशन में से किशोरों में 19 फीसदी डिप्रेशन, 24 फीसदी जनरलाइज़ एंग्जायटी डिसऑर्डर, 18 फीसदी स्ट्रेस, 0-4 फीसदी अटेंशन डेफिसिट ह्यपरकिनेटिक डिसऑर्डर (ADHD), 17.4 फीसदी एजुकेशनल डिफीकल्टी, 1.9 फीसदी पैनिक डिसऑर्डर और सोशल एंग्जायटी मिलता है।
डॉ रचना दुबे ने बताया की पैरेंट को इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए :-
1. बच्चों के दोस्तों और उनकी संगत पर ध्यान दें।
2. उनकी रूचि अनुसार ही सब्जेक्ट सिलेक्ट करने की स्वतंत्रता दें।
3. अपने अधूरे सपने बच्चों में न पूरे करें।
4. धैर्य रखें और कम्युनिकेशन ब्रेक न होने दें।
5. साइकेट्रिक टीनएज डिसऑर्डर किशोरियों में अनियमित पीरियड्स तथा किशोरावस्था में होने वाले बदलावों में मेडिकल काउंसलिंग तथा इलाज बहुत लाभदायक होता है।
6. उनके अच्छे दोस्त बनकर क्वालिटी टाइम के साथ-साथ क्वांटिटी टाइम भी किशोरों को दें, जिससे उनके मन में हो रहे उथल-पुथल को आप जान पाएं।